Madhu varma

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लेखनी कविता - पलंग - बालस्वरूप राही

पलंग / बालस्वरूप राही


एक पलंग पर बच्चे चार,
कैसे सोएँ टाँग पसार?

उनमें एक भरे खर्राटे,
और दूसरा उसको डांटे।
तीजा दोनों को समझाए,
चौथा जाग खड़ा हो जाए,
 चारों लड़ने को तैयार।

एक पलंग पर बच्चे चार,
कैसे सोएँ टाँग पसार?

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